इन्वर्टर के साथ आने वाली बैटरी के प्रकार कई होते हैं जिसका इस्तेमाल अधिकतर लोग करते ही हैं । पर ट्यूबलर इन्वर्टर बैटरी खरीदने से पहले आपको यह जानना भी जरूरी है की इन्वर्टर के साथ आने वाली बैटरी कई प्रकार की देखने को मिलती है जबकि इस आर्टिकल में हम आपको सिर्फ ट्यूबलर बैटरी के बारे में ही बारीकी के साथ बताने वाले हैं जैसे की ट्यूबलर बैटरी क्या है यानि की इसे ट्यूबलर बैटरी क्यों कहते हैं, ट्यूबलर बैटरी के उपयोग और ट्यूबलर बैटरी के अंदर का आकार किस तरह का होता है तो चलिए जानते हैं ।
What is Tubular Battery in hindi | ट्यूबलर बैटरी क्या है :
ट्यूबलर बैटरी को ट्यूबलर बैटरी क्यों कहते हैं पहले हम आपको इसी के बारे में बताना चाहेंगे । ट्यूबलर बैटरी के अंदर की प्लेट बाकी के बैटरी की तुलना में काफी लम्बी और ट्यूब जैसे आकार होता है जिसको हमने नीचे की तरफ बताया हुआ है । बड़ी प्लेट्स होने की वजह से ट्यूबलर बैटरी का बैटरी बैकअप काफी लम्बा जाता है । यानी की बिजली के चले जाने के बाद अगर उपकरणों को आप लगातार और काफी देर तक चलाना चाहते हैं तो इस जगह पर तो ट्यूबलर बैटरी ही सबसे बेस्ट रहती है क्योंकि ट्यूबलर बैटरी ही एक ऐसी बैटरी है जो आकार में काफी बड़ी होने के बाद अधिक मात्रा में बिजली को जमा करने में सक्षम होती हैं । इसीलिए सबसे अधिक मात्रा में बिकने वाली और बनाने वाली बैटरी ट्यूबलर बैटरी ही है ।
What is Tubular Battery in hindi |
ट्यूबलर बैटरी के बारे में अभी बहुत कुछ जानना भी जरूरी है जैसे की ट्यूबलर बैटरी को लीड एसिड बैटरी भी कहते हैं क्योंकि इसके अंदर एसिड डाला जाता है और प्लेट्स भी इसी एसिड से डूबी रहती हैं । एसिड के आलावा सबसे ऊपर की तरफ कई खोल दिए जाते हैं जिसमें पानी डाला जाता है तभी तो ट्यूबलर बैटरी काम कर पाती है । हलांकि आप इतना जरुर याद रखें की ट्यूबलर बैटरी का वजन बहुत ज्यादा होता है क्योंकि इसके अंदर इस्तेमाल की जाने वाली प्लेट्स बहुत मोटी होती हैं तकरीबन 6 mm की मोटाई और लम्बाई निर्भर करती है बैटरी के क्षमता के ऊपर तकरीबन 30 इंच ।
Parts of Tubular Battery in hindi | ट्यूबलर बैटरी के पार्ट्स :
ट्यूबलर बैटरी के अंदर कुछ ही पार्ट्स होते जैसे की प्लेट्स, कंटेनर, सेपरेटर, एसिड इत्यादि । इन सभी के बारे में हम नीचे की तरफ एक-एक करके बताने वाले हैं जोकि इस प्रकार है :
- प्लेट्स :
प्लेट्स तो वैसे बहुत लगाई जाती है ट्यूबलर बैटरी के अंदर लेकिन मुख्य रूप से उन सभी के अंदर प्लेट्स दो होती हैं जिसमें से एक प्लेट्स पॉजिटिव और दूसरी प्लेट्स नेगेटिव प्लेट होती है । ट्यूबलर बैटरी की पॉजिटिव प्लेट और नेगेटिव प्लेट के अलग ही तरीके से बनाया जाता है । जैसे की ट्यूबलर बैटरी की पॉजिटिव प्लेट का रंग ब्राउन जैसा होता है और उसके अंदर अलग-अलग ट्यूब होती है जो लीड डाइऑक्साइड से बनी होती है जिसको पैरेलल में रखकर उन सभी ट्यूब को आपस में जोड़ दिया जाता है । जोड़ने के लिए सबसे नीच छोटे-छोटे कप्स का और सबसे ऊपर तो वेल्डिंग के जरिये जोड़ना होता है । इसके बाद इन्हीं ट्यूब के आगे और पीछे की तरफ एक्टिव पदार्थ डालकर इसे ढक दिया जाता है जिसे लीड डाइऑक्साइड कहते हैं । जिससे एक पतली सी प्लेट दिखाई देती है । एक्टिव पदार्थ बाहर ना निकले इसके लिए इस प्लेट को नर्म गद्दे जैसे पतले से कपड़े की मदद से पैक करने के बाद इसका एक सिरा ही बाहर निकाला जाता है । गद्दे जैसे कपड़े का उपयोग इसीलिए किया जाता है ताकि एसिड प्लेट से साथ लगा रहे ।
ट्यूबलर बैटरी की नेगेटिव प्लेट की ट्यूब लीड एंटीमनी से बनी होती है और इस प्लेट का रंग होता है सिल्वर रंग जैसा । ट्यूबलर बैटरी की नेगेटिव प्लेट के अंदर भी कई ट्यूब होती हैं जिसको आपस में जोड़ने के बाद उसके ऊपर एक्टिव पदार्थ डालकर एक प्लेट का आकार दे दिया जाता है और यही एक्टिव पदार्थ लीड एंटीमनी ही होता है । फिर इसी के ऊपर वही नर्म गद्दे जैसा कपड़ा लेकर इसके ऊपर लपेटने के बाद इसका एक सिरा बाहर निकाला जाता है ।
- एसिड :
ट्यूबलर बैटरी के अंदर एसिड को डाला जाता है तभी तो यह ट्यूबलर बैटरी काम करती है । सल्फ्युरिक एसिड ही इस ट्यूबलर बैटरी के अंदर डाला जाता है , पर आप इतना भी याद रखें की ट्यूबलर बैटरी के अंदर पूरा सल्फ्युरिक एसिड नहीं डाला जाता है बल्कि पानी के साथ मिक्स करने के बाद ही इसे अंदर डाला जाता है और सल्फ्युरिक एसिड की मात्रा कम होती है पानी की तुलना में ।
- सेपरेटर :
दोनों प्लेट्स आपस में ना जुड़े इसके लिए प्लास्टिक से से बनी हुई पतली सी शीट को ही बीच में लगाया जाता है और इसी शीट को सेपरेटर कहते हैं । सेपरेटर पतला ही होता है पर ज्यादा मोटा नहीं ।
- कंटेनर :
कंटेनर हार्ड प्लाटिक का बना होता है जोकि जल्दी से टूटने वाला नहीं होता है । कंटेनर के अंदर अलग-अलग खोल बने होते हैं जिसके अंदर प्लेट्स रखीं जाती हैं और इस में ही एसिड और पानी को डाला जाता है । कंटेनर के सबसे ऊपर के कवर कई खोल देखने को मिलते हैं ताकि आप अलग से पानी पा सकें जब पानी सूखता है तो ।
- फ्लोट इंडिकेटर :
फ्लोट इंडिकेटर बना होता है प्लास्टिक से और इसके अंदर एक पतली सी लीड होती है जोकि पानी के कम और अधिक होने पर ऊपर या नीचे होती है । इसी से ही पता चलता है की पानी ट्यूबलर बैटरी के अंदर कम है फुल । फ्लोट इंडिकेटर कुल 6 होते हैं और सभी खोल के अंदर पानी डालना होता है ।
ट्यूबलर बैटरी कैसे काम करती है :
ट्यूबलर बैटरी के काम करने का तरीका बहुत ही साधारण है । वैसे ट्यूबलर बैटरी के अंदर बहुत साड़ी पॉजिटिव और नेगेटिव प्लेट्स होती हैं पर हम आपको दो ही प्लेट्स के बारे में समझाने वाले हैं । पॉजिटिव और नेगेटिव प्लेट को किसी कंटेनर में रखने के बाद उसके बाद इसी कंटेनर के अंदर सल्फ्युरिक एसिड को पानी के साथ मिक्स करके डाला जाता है । जब बैटरी को चार्ज किया जाता है तब करंट नेगेटिव से पॉजिटिव प्लेट की तरफ और इलेक्ट्रॉन्स पॉजिटिव प्लेट से नेगेटिव प्लेट की तरफ प्रवाहित होकर जमा होने लगते हैं । जब पॉजिटिव प्लेट में इलेक्ट्रॉन्स भर जाते हैं और नेगेटिव प्लेट में करंट भर जाता है तब इसका मतलब यह होता है की ट्यूबलर बैटरी चार्ज हो चुकी है । ट्यूबलर बैटरी के खाली होने पर यानी की डिस्चार्ज होने पर करंट पॉजिटिव प्लेट से निकल कर नेगेटिव प्लेट की तरफ और इलेक्ट्रॉन्स नेगेटिव प्लेट से निकल कर पॉजिटिव प्लेट की तरफ बहकर जमा होने लगते हैं इसका मतलब ट्यूबलर बैटरी खाली हो रही है । पॉजिटिव प्लेट में इलेक्ट्रॉन्स की संख्या फुल होना या करंट की संख्या का ना होना और नेगेटिव प्लेट में इलेक्ट्रॉन्स का ना होना और करंट की संख्या का होना यह दर्शाता है की ट्यूबलर बैटरी पूरी तरह से खाली है ।
Tubular Battery working in hindi |
यह तो साधारण सी बात है जो सभी बैटरी में होती है पर ट्यूबलर बैटरी के चार्ज होने पर और डिस्चार्ज होने पर इसके अंदर पड़े हुए पर एसिड पर बहुत असर पड़ता है । जैसे की ट्यूबलर बैटरी के चार्ज होने पर इसके अंदर पड़ा हुआ सल्फ्युरिक एसिड बीच में ही रहता है लेकिन जैसे-जैसे बैटरी डिस्चार्ज होती रहती है वैसे-वैसे सल्फ्युरिक एसिड दोनों प्लेट्स के पास चला जाता है और बीच में रह जाता है सिर्फ पानी ही । जब बैटरी को दुबारा चार्ज किया जाता है तब सल्फ्युरिक एसिड प्लेट्स से हटकर वापिस बीच में ही पानी में मिल जाता है ।
पर आपको इतना जरुर याद रखना है की ट्यूबलर बैटरी के चार्ज और डिस्चार्ज होने पर इसका असर सल्फ्युरिक एसिड पर पड़ने से सल्फ्युरिक एसिड में से ही हल्की सी गैस बनने लगती है जोकि ऊपर की तरफ निकलती है पर । ये गैस निकल जाती है उस होल से जहाँ पर पानी डाला जाता है । इसके आलावा इसका असर प्लेट्स पर पड़ता है जिससे प्लेट्स गलने लगती है इसीलिए बार-बार बैटरी को चेंज करना पड़ता है तकरीबन 5 साल बाद ।
Types of Tubular Battery in hindi | ट्यूबलर बैटरी के प्रकार :
ट्यूबलर बैटरी के प्रकार दो होते हैं जिसमें से एक बैटरी साधारण ट्यूबलर बैटरी होती है और दूसरी बैटरी का नाम है सोलर ट्यूबलर बैटरी । इसके बारे में जानकारी इस प्रकार है :
- साधारण ट्यूबलर बैटरी :
साधारण ट्यूबलर बैटरी वही बैटरी होती है जिसका इस्तेमाल हम सभी कर रहे हैं और इसको साधारण ट्यूबलर बैटरी का नाम इसीलिए रखा गया टाक बार बैटरी का इस्तेमाल ना करना पड़े । यानी की अगर बिजली बहुत ही कम बार जाती है और सोलर पैनल नहीं लगाया है आपने तो आपके लिए साधारण ट्यूबलर बैटरी सही है क्योंकि इसकी कीमत कम होती है इसीलिए ।
- सोलर बैटरी :
सोलर बैटरी बनाया गया है स्पेशल सोलर पैनल से कनेक्ट करने के लिए क्योंकि सोलर पैनल के लगने बाद बार-बार बैटरी का बार-बार यूज होता है इसीलिए सोलर बैटरी बनाई गयी है ताकि बार-बार प्रतिदिन यूज करने के बाद भी सोलर बैटरी लम्बे समय तक चल सके ।
बारीकी के साथ जानिये सोलर पैनल के बारे में
ट्यूबलर बैटरी की जिन्दगी कितनी होती है :
ट्यूबलर बैटरी की जिन्दगी तकरीबन 5 साल से अधिक तक की होती है और यह निर्भर करता है कम्पनी की तरफ से निकाली जाने वाली इन्वर्टर बैटरी कितने साल की वारंटी के साथ आता है । वारंटी जितनी अधिक मिलती है उतनी ही जिन्दगी अधिक होती है ट्यूबलर बैटरी की । जैसे की ट्यूबलर बैटरी की वारंटी 24 महीने लेकर 75 महीने तक की मिलती है और कीमत में भी अंतर देखने को मिलता है ।
ट्यूबलर बैटरी में कौन सा करंट जमा होता है :
ट्यूबलर बैटरी के अंदर सिर्फ डायरेक्ट करंट यानी की DC करंट ही जमा होता है । पर आप इतना जरुर ध्यान रखें की बैटरी चाहे कोई भी हो उसमें तो dc करंट ही जमा होता है । ट्यूबलर बैटरी भी dc करंट से ही चार्ज होती है और काम करती है ।
क्या ट्यूबलर बैटरी में पानी डालना पड़ता है :
जी हाँ दोस्तों ट्यूबलर बैटरी के अंदर पानी डालना पड़ता है जब इसके अंदर का पानी खत्म होता रहता है तो । शुरुआत में आने वाली ट्यूबलर बैटरी के अदंर पड़ा हुआ पानी पहले से ही भरा हुआ होता है । बार-बार ट्यूबलर बैटरी के यूज करने पर इसके अंदर का ही पानी सूखेगा जिससे आपको तकरीबन दो-तीन महीने बाद पानी डालना ही पड़ता है पर सल्फ्युरिक एसिड इसमें आपको डालने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि इसे पहले से ही कम्पनी की तरफ से भर दिया जाता है ।
ट्यूबलर बैटरी का वोल्टेज कितना होता है :
ट्यूबलर बैटरी 12 वोल्टेज की होती है और उसके अंदर लगे एक-एक सेल का वोल्टेज 2 वोल्ट होता है । 6 कंटेनर में 6 सेल लगे होते हैं जोकि 2-2 वोल्ट के होते हैं और 6 प्लेट्स का कुल वोल्टेज 12 वोल्ट हो जाता है क्योंकि इसे सीरिज में लगाया जाता है । सीरिज में लगाने से वोल्टेज अधिक होता है जबकि amps उतना ही रहता है जितना एक सेल का होता है । वैसे कंटेनर के अंदर एक खाने में रखे हुए एक सेल के अंदर प्लेट्स कई होती हैं तकरीबन 13 हैं जिसको पैरेलल में लगाया जाता है ताकि amps की मात्रा को अधिक किया जा सके । एक प्लेट्स का वोल्टेज 2 होता है । अगर एक प्लेट्स का वोल्टेज 2 है और amps की मात्रा 10 है तो 10 प्लेट्स को पैरेलल में जोड़ने से वोल्टेज 2 ही मिलेगा लेकिन amps की मात्रा 100 हो जाएगी क्योंकि पैरेलल में लगाने से वोल्टेज नहीं बल्कि सिर्फ amps ही अधिक होता है । 6 कंटेनर में लगे हुए एक सेल को सभी सेल के साथ सीरिज में जोड़ा जाता है जिससे वोल्टेज कुल 12 हो जाता है ।
Benefits of Tubular Battery in hindi | ट्यूबलर बैटरी के फायदे :
- ट्यूबलर बैटरी की जिन्दगी काफी ज्यादा होती है ।
- ट्यूबलर बैटरी का बैटरी बैकअप बहुत लम्बा जाता है ।
- ट्यूबलर बैटरी की कीमत कम होती है ।
ट्यूबलर बैटरी की कमियां :
- ट्यूबलर बैटरी के अंदर कई बार पानी डालना पड़ता है ।
- ट्यूबलर बैटरी का वजन बहुत अधिक होता है ।
- पानी के खत्म होने पर ट्यूबलर बैटरी खराब हो जाती है ।
- फ्लैट प्लेट बैटरी की तुलना में ट्यूबलर बैटरी आकार में काफी लम्बी होती है ।
जरूरी सुचना :
ट्यूबलर बैटरी के अंदर सल्फ्युरिक एसिड जो नुक्सान हो सकता है आपके लिए अगर आपने इसे हाथ में लगाया है तो । इसीलिए आप सल्फ्युरिक एसिड को दूर रहें और घर पर ट्यूबलर बैटरी को खोलने की कोशिश ना करें ।