सोलर सेल क्या है | सोलर पैनल क्या है | सोलर पैनल के प्रकार

सबसे अधिक मात्रा में बिका जाने वाला इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस सोलर पैनल ही हैं और इसी का उपयोग करने पर फायदा काफी हो रहा है हम लोगों को जिसके बारे में हम बारीकी के साथ बताने वाले हैं जैसे की सोलर सेल क्या है, सोलर पैनल क्या है, सोलर पैनल के प्रकार, सोलर पैनल के उपयोग, सोलर पैनल के फायदे और कमियां । वैसे आप जान लें की सोलर पैनल के बारे में जानने से पहले सोलर सेल के बारे में जरुर जाने तभी तो आपको अच्छी तरह से समझ पता चल पायेगा ।

 

What is Solar Panel in hindi | सोलर पैनल क्या है :

सोलर पैनल बहुत सारे छोटे-छोटे सोलर सेल से जुड़कर बना होता है । यानी की सबसे पहले सोलर सेल को तैयार किया जाता है जिसका आकार काफी छोटा होता है और कई सारे सोलर सेल को सीरिज और पेरलेल में यानी की आपस जोड़ा जाता है जिससे एक बड़ी सी प्लेट जैसा आकार देखने को मिलता है और उसी प्लेट को नाम दिया गया है सोलर पैनल । एक सोलर पैनल के अंदर तकरीबन 32 सेल से लेकर 96 सोलर सेल देखने को मिल जाते हैं और यह निर्भर करता है सोलर प्लेट कितनी वॉट की है ।

What is Solar Panel in hindi
What is Solar Panel in hindi

What is Solar Array in hindi | सोलर ऐरे क्या है :

जब बहुत साड़ी सोलर पैनल को आपस में जोड़ा जाता है तब उसे सोलर ऐरे के नाम से जाना जाता है । घरों के अंदर लगे उपकरणों को चलाने के लिए सोलर ऐरे ही लगवाना पढ़ता है यानी की कई सारे सोलर पैनल लगवाने पढ़ते हैं । इसी को ही सोलर ऐरे कहते हैं ।

What is Solar Cell in hindi | सोलर सेल क्या है :

सोलर सेल का दूसरा नाम होता है फोटोवोल्टिक सेल । सोलर सेल बहुत ही पतला लेकिन आकार में थोड़ा सा बड़ा जरुर देखने को मिलता है । सोलर पैनल जोकि सिलिकॉन जैसे धातु से ही बना होता है पर अगर आप बारीकी के साथ जानने के लिए आप नीचे भी जा सकते हैं हमने अलग से बताया हुआ है । वैसे आप इतना भी जरूरत ध्यान रखें की सोलर सेल बहुत ही कम वोल्टेज का करंट बनता है जैसे की तकरीबन 0.5 वोल्ट । जोकि काफी कम है इतने वोल्टेज से उपकरण चलेंगे ही नहीं इसीलिए बहुत सारे सोलर सेल को आपस में जोड़ा जाता है ताकि हाई वोल्टेज का करंट बनाया जा सके ।

 

सोलर सेल क्या करता है :

सोलर सेल का काम होता है विधुत को बनाना । इस सेल को रौशनी देने पर ही यह करंट बनाने के काम करता है लेकिन रौशनी वो जो हमें सूरज से मिलती है क्योंकि उसमें फोटोंस होते हैं । इन्हीं फोटोंस के सोलर पैनल से ऊपर गिरने से ही करंट यानी की विधुत बनता है । आप दिमाग में यह मत सोच लेना की बल्ब की रौशनी से सोलर सेल से बिजली बनाई जा सकती है पर ऐसा नहीं होता क्योंकि सोलर सेल गर्मी से ही विधुत बनता है । क्योंकि सूरज की किरणें जहाँ-जहाँ गिरती है तो उस जगह पर गर्मी पैदा होता है यानी की जगह गर्म होती है । इसीलिए सूरज से आने वाली किरणों की वजह से सोलर सेल का ऊपरी हिस्सा गर्म होता है जिससे सोलर सेल विधुत बना पाता है ।

 

सोलर सेल का आविष्कार किसने किया :

सोलर सेल का आविष्कार तो कई वैज्ञानिकों के मिलकर किया था जैसे की Edmond Becquerel, Daryl Chapin, Gerald Pearson, Calvin Souther Fuller, William Grylls Adamns  लेकिन शुरुआत की थी Edmond Becquerel ने साल 1839 में 

सोलर सेल का आविष्कार कब हुआ :

सोलर सेल का अविष्कार साल 1839 में हुआ था यानी की उस दिन ही सोलर सेल बना था का सबसे पहले । लेकिन इसके बाद और भी कई वैज्ञानिकों के सोलर सेल के ऊपर रिसर्च किया ताकि इसे बेहतर से बेहतर बनाया जा सके । उस वक्त ये सोलर सेल विधुत बनाने में सक्षम तो थे लेकिन विधुत अधिक मात्रा में नहीं बना पाते थे  लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत थी इसकी जिन्दगी की  यानी की लम्बे समय तक सोलर सेल काम करने में सक्षम नहीं थे  इसी कारण से सोलर सेल का उपयोग कई साल गुजरने के बाद किया जाने लगा  लेकिन उस वक्त बहुत ही कम उपकरणों के अंदर इसका इस्तेमाल किया जाने लगा था जैसे की कैलकुलेटर में । पर अधिकतर उपयोग तो उस समय सैटलाइट में किया जाता था क्योंकि सैटलाइट पृथ्वी के ऊपर काम करते हैं और बिजली चाहिए होती थी लगातार, तब सोलर पैनल ही काम में आने लगा 

जैसे-जैसे साल बीतता गया वैसे-वैसे सोलर सेल की एफिशिएंसी को बढ़ाया गया ताकि लम्बे समय तक सोलर काम कर सके और बार-बार सोलर सेल को खरीदने की जरूरत ना पड़े  आज के समय की बात करें तो सोलर सेल को इतना बेहतर तरीके से बनाया जा चुका है की ये सोलर सेल अधिक से अधिक 25 साल तक काम कर सकते हैं  यानी की सोलर सेल या सोलर पैनल को एक बार खरीदने के बाद अधिक से अधिक 25 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है  पर इसके बाद इसकी एफिशिएंसी कम होने लगती है जिसका असर वोल्टेज और करंट पर पढ़ता है यानी को वोल्टेज और amps कम देने लगता है सोलर सेल 

सोलर सेल कैसे बनता है :

सोलर सेल के सबसे ऊपर की तरफ और सबसे नीचे की तरफ कांच लगाया जाता है सोलर सेल की सुरक्षा के लिए । सोलर सेल बनता है सिलिकॉन से जोकि एक ऐसा धातु है जिसमें से विधुत आसानी से आ-जा सकता है । रेत और कार्बन को आपस में मिलाकर 2000 डिग्री से भी अधिक तक गर्म करने पर उसमें से निकाल लिया जाता है सिलिकॉन और इसी सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है सोलर सेल बनाने के लिए । लेकिन सोलर सेल की दो परतें होती हैं जिसमें से सबसे ऊपर की परत को n जंक्शन और नीचे की परत को p जंक्शन कहा जाता है जोकि दोनों सिलिकॉन की ही बनी होती है लेकिन इन दोनों परतों में अलग-अलग नया पदार्थ डाल दिया जाता है जैसे की एल्युमीनियम और फॉस्फोरस ।

Solar cell diagram in hindi
Solar cell diagram in hindi

सोलर सेल की ऊपर और नीचे की परत होती तो सिलिकॉन की ही है लेकिन अलग-अलग पदार्थ शामिल किया जाता है । जैसे की सोलर सेल की ऊपर की परत जिसे n जंक्शन कहते हैं उसी परत को बनाने के लिए सिलिकॉन धातु को डोपिंग किया जाता है । यानी की सिलिकॉन में जब थोड़ा सा एल्युमीनियम मिक्स जाता है तब इलेक्ट्रॉन्स की संख्या उसके अंदर अधिक हो जाती है लेकिन नीचे की परत की तुलना में होल्स की संख्या कम हो जाती है । इसी वजह से इसकी ऊपर की परत पॉजिटिव टर्मिनल कहलाती है । सोलर सेल की नीचे की परत जिसे p जंक्शन कहते हैं वह p जंक्शन यानी की p सिलिकॉन जिसमें थोड़ा सा फॉस्फोरस मिक्स किया जाता है जिसके अंदर होल्स की संख्या कम होती है । होल्स की संख्या कम होने की वजह से सोलर सेल की नीचे की परत नेगेटिव टर्मिनल कहलाने लगती है । वैसे आप इतना जरुर ध्यान रखें की सोलर सेल की ऊपर और नीचे की परत तो सिलिकॉन की बनी होती तो है लेकिन अलग से ऊपर की परत में एल्युमीनियम और नीचे की परत में फोस्फोरस मिलाया जाता है ताकि होल्स की संख्या एक परत में कम और इलेक्ट्रॉन्स की संख्या दूसरी परत में अधिक होने से विधुत का बहाव एक जगह से दूसरी जगह तक होने लग जाए । इसी वजह से नेगेटिव और पॉजिटिव टर्मिनल भी देखने को मिल जाते हैं सिलिकॉन को डोपिंग करने की वजह से ।

p और n जंक्शन यानी की सिलिकॉन को आपस में जोड़ दिया जाता है और बीच में कुछ भी नहीं होता है और तैयार हो जाता है सोलर सेल । depletion लेयर कैसे बनती है उसके बारे में आप नीचे जानिए सोलर सेल कैसे काम करता है ।

सोलर सेल की नीचे की परत को ताम्बे की जोड़ा जाता है और वह टर्मिनल नेगेटिव टर्मिनल कहलाता है  लेकिन ऊपर की परत को मेटल फिंगर से जोड़ा जाता है । मेटल फिंगर का आकार प्लेट जैसा नहीं दिया जाता ताकि रौशनी सोलर सेल के ऊपर अच्छी तरह से लग सके । अगर सोलर सेल के ऊपर की n सिलिकॉन की परत को पूरी तरीके से मेटल से जोड़ दें तो धुप नहीं लग पायेगी n सिलिकॉन को  इसीलिए ऊपर मेटल फिंगर को लगाया जाता है ताकि बीच-बीच में जगह रहे n सिलिकॉन को गर्मी या रौशनी मिलने के लिए । अब आपके दिमाग में यह भी सवाल होगा की कई साड़ी मेटल फिंगर को क्यों लगाया गया जबकि एक ही फिंगर को n सिलिकॉन से जोड़ा जा सकता था करंट को बहाने के लिए । ऐसा इसीलिए की n सिलिकॉन के अंदर पड़े हुए इलेक्ट्रॉन्स ज्यादा दुरी तक नहीं जा पाते यानी की थोड़ी दूर ही जा पाते हैं । इसीलिए कई सारी मेटल की फिंगर लगाई जाती है । जबकि सोलर सेल की नीचे की p सिलिकॉन की परत को को गर्मी और सूरज की रौशनी की जरूरत नहीं होती इसीलिए इसे पूरी तरीके से ताम्बे की प्लेट के साथ जोड़ दिया जाता है 

 

सोलर सेल कैसे काम करता है :

सोलर सेल के काम करने का तरीका थोड़ा सा अलग है अगर इसकी तुलना बैटरी से की जाए तो  लेकिन आप सबसे पहले ऊपर की तरफ यह जान लें की सोलर सेल कैसे बनता है तभी आप यह जानना की सोलर सेल कैसे काम करता है क्योंकि कुछ बातें हमने ऊपर और कुछ बातें हमने इसी पॉइंट्स पर समझाई हैं इसीलिए ।

Solar Cell working in hindi
Solar Cell working in hindi

चित्र हमने पांच सोलर सेल के चित्र दिखाएँ हैं जिसमें आपको यह पता चलेगा की कैसे रौशनी पड़ने पर सोलर सेल क्या-क्या करने लगता है  सबसे पहले सोलर सेल के अंदर p और n सिलिकॉन यानी की p और n जंक्शन के अंदर इलेक्ट्रॉन्स और होल्स होते हैं जोकि एक ही जगह पर स्थित होते हैं यानी की मूव नहीं होते हैं जब तक उसके लिए कुछ किया ना जाए । सोलर सेल के ऊपर फोटोंस के गिरने पर या सोलर सेल को गर्मी देने पर सोलर सेल की n जंक्शन के इलेक्ट्रॉन्स p जंक्शन की तरफ आकर्षित होकर p जंक्शन में जाने लगते हैं और होल्स जोकि p जंक्शन पर हैं वे होल्स p जंक्शन की तरफ जाकर जमा होने लगते हैं । यानी की इलेक्ट्रॉन्स और होल्स हमेशा उल्टी दिशा की तरफ ही बहते हैं । जब तक गर्मी या सूरज का प्रकाश depletion लेयर तक नहीं पहुंचता तब तक सोलर सेल काम नहीं कर सकता इसीलिए सोलर सेल की ऊपर की परत को बहुत ही पतला बनाया जाता है और ऊपर की परत n सिलिकॉन होती है 

हलांकि इलेक्ट्रॉन्स जब n जंक्शन से p जंक्शन की तरफ जाकर p जंक्शन यानी की p सिलिकॉन में जमा होने लगते हैं तब ये इलेक्ट्रॉन्स गर्मी की वजह से depletion लेयर के बीच में ही गुजर कर वापिस उसी प्लेट्स में चले जाते हैं जहाँ से वे आये थे यानी की n जंक्शन में । यानी की इलेक्ट्रॉन्स n जंक्शन से बाहर निकलर कर तार की मदद से होते हुए p जंक्शन के अंदर जाने के बाद वही इलेक्ट्रॉन्स ट्रान्सफर हो जाते हैं n जंक्शन में । लेकिन इलेक्ट्रॉन्स n जंक्शन से उठकर depletion लेयर से होते हुए p जंक्शन पर नहीं पहुंच सकते केवल तार की मदद से ही पहुंच सकते हैं । जबकि इलेक्ट्रॉन्स जब p जंक्शन पर पहुंचते हैं तब वे इलेक्ट्रॉन्स depletion लेयर से ही होते हुए वापिस n जंक्शन में चले जाते हैं और ऐसे ही इलेक्ट्रॉन्स का प्रवाह बार-बार होने लगता है । इलेक्ट्रॉन्स का बार-बार बहना ही करंट विधुत कहलाता है यानी की करंट ।

होल्स का भी ऐसा ही होता है लेकिन ये उल्टी दिशा में बहते हैं जैसे की सोलर सेल को गर्मी देने पर या सूरज का प्रकाश देने पर इसकी गर्मी जब depletion लेयर तक पहुंचती है तब होल्स जो पहले p जंक्शन परस्थित थे वही होल्स एक प्लेट से दूसरी प्लेट की तरफ सीधा ही ट्रान्सफर नहीं हो सकते क्योंकि बीच में depletion लेयर लगा है । लेकिन होल्स तार की मदद से ही p जंक्शन से उठकर तार की मदद से n जंक्शन में जाने लगते हैं और वहां पर पहुंचने के बाद होल्स डायरेक्ट यानी की सीधा ही depletion लेयर से होते हुए सीधा ही वापिस p जंक्शन पर चले जाते हैं यानी की depletion लेयर उस वक्त होल्स को नहीं रोकता क्योंकि होल्स जहां से बना था वहां पर जा सकता है बिना तार के ।

पर पड़े हुए होल्स की तरफ आकर्षित होते हैं और ठीक वैसे ही होल्स भी इलेक्ट्रॉन्स की तरफ आकर्षित होकर पास आने के बाद आपस में मिल जाते हैं । सोलर सेल के अंदर जिस जगह पर इलेक्ट्रॉन्स और होल्स आपस में मिलते हैं वह जगह जोकि बीच में होती है उस जगह को depletion लेयर कहते हैं । क्योंकि depletion लेयर वह लेयर होती है जो इलेक्ट्रॉन्स और होल्स को एक दुसरे से मिलने नहीं देती । बीच में depletion लेयर आने की वजह से इलेक्ट्रॉन्स और होल्स एक दुसरे के पास नहीं आ पाते हैं लेकिन कोशिश करते हैं एक दूसरी की तरफ मिलने के लिए । इसके बाद जब आप पॉजिटिव और नेगेटिव टर्मिनल के बीच में कोई बल्ब लगा देते हैं तब इलेक्ट्रॉन्स जो पॉजिटिव ।

इसमें आपने यह सीखा है की इलेक्ट्रॉन्स और होल्स जोकि पहले से ही प्लेट्स में जमा होते हैं लेकिन गर्मी की वजह से या सूरज के प्रकाश की वजह से मूव होते हैं एक प्लेट से दूसरी प्लेट की तरफ जिससे विधुत तैयार होता है । यही इलेक्ट्रॉन्स और होल्स बार-बार एक प्लेट से दूसरी प्लेट और दूसरी प्लेट से वापिस पहली प्लेट में आते जाते हैं जिससे सोलर सेल लगातार विधुत देता रहता है । लेकिन गर्मी भी सोलर सेल के ऊपर लगातार पढ़नी चाहिए तभी लगातार विधुत बना पायेगा ।

 

Types of Solar Panel in hindi | सोलर पैनल के प्रकार :

सोलर पैनल के प्रकार तीन होते हैं जोकि इस प्रकार है :

  1. मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल
  2. पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल
  • Polycrystalline सोलर पैनल क्या है :

पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल के ऊपर लम्बी-लम्बी रेखाएं होती हैं, इसका रंग नीला होता है । इन्हीं दो पॉइंट्स के मदद से आप पहचान सकते हैं पोली-क्रिस्टालाइन  सोलर पैनल को । पोली-क्रिस्टालाइन सबसे पहले बनाये जाने वाले सोलर पैनल थे लेकिन आज के समय में इसका उपयोग बहुत ही कम मात्रा में किया जाता है क्योंकि इसकी कमियां अधिक लेकिन फायदे कम देखने को मिलते हैं इसीलिए । जैसे की पोली-क्रिस्टालाइन तभी अच्छी तरह से विधुत बना पायेगा जब इसे पूरी धुप या गर्मी या सूरज की रौशनी मिलेगी । जैसे की आपको पता होगा की गर्मियों के दिन तो सूरज की रौशनी से गर्मी काफी ज्यादा उत्पन्न होती है जिससे सोलर पैनल आराम से बिजली बना पायेगा । लेकिन ठंडो के दिन तो सूरज की वजह से होने वाली गर्मी कम होती है जिससे अगर सूरज की रौशनी कम हो गयी तो पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पनाले कम ही बिजली बना पायेगा और बेहद कम अगर कोई सोलर पैनल बिजली बनाते हैं तो इन्वर्टर बिजली को आगे जाने नहीं देता यानी की ब्लॉक कर देता है । इसमें आपको यही सिखने को मिला है की पोली-क्रिस्टालाइन काम तभी अच्छी तरह से करते हैं जब इसे अधिक सूरज की रौशनी और गर्मी मिलती है । सबसे बड़ी खासियत पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल की यह है की जितनी अधिक गर्मी से यह अधिक बिजली बनाने में सक्षम होते हैं । हलांकि पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल आपके लिए सही है अगर आप कम से कम कीमत में कोई सोलर पैनल खरीदना चाहते हैं तो क्योंकि 100 वॉट के पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल की कीमत है तकरीबन 4500 रूपए ।

  • Monocrystalline सोलर पैनल क्या है :

मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल सबसे बेस्ट और सबसे अधिक मात्रा में बिकने वाले सोलर पैनल हैं । ये सोलर पैनल पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल का बाद ही आये थे यानी की इसका आविष्कार हुआ था । जिस सोलर पैनल के ऊपर ट्रेंगल जैसा आकार और रंग बेंगनी हो वे सोलर पैनल मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल होते हैं । मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल की सबसे बड़ी खासियत तो यह है की ये कम गर्मी पर भी सही तरीके से बिजली बनाने में सक्षम होते हैं । जबकि पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल को गर्मी अगर कम मिलती है तो बिजली अधिक नहीं बना पाते हैं । लेकिन गर्म अधिक हो या कम, सूरज की रौशनी कम पड़े या अधिक ये मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल करंट पूरा ही बनाते हैं जिसे असमान में बादल रहने पर भी ये मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल बिजली बनाने में सक्षम होते हैं लेकिन गर्मी इन पर पढ़नी चाहिए । मोनो-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल की कीमत अधिक होती है जैसे की 100 वॉट की पोली-क्रिस्टालाइन सोलर पैनल की कीमत तकरीबन 5500 रूपए की होती है ।

सोलर सेल का पॉजिटिव और नेगेटिव सिरा कौन सा होता है :

सोलर सेल की ऊपर की परत जिसे n सिलिकॉन की परत होती है वह सिरा पॉजिटिव सिरा कहलाता है । जबकि नीचे की p सिलिकॉन वाली परत नेगेटिव टर्मिनल कहलाती है । 

सोलर सेल कौन सा करंट बनाता है :

सोलर सेल डायरेक्ट करंट यानी की dc करंट ही बनाते हैं । लेकिन आज के समय में अगर आप सोलर पैनल देखने जायोगे तो आपको dc करंट बनाने वाले सोलर पैनल ही देखने को मिलेंगे अगर आप बड़ा सा सोलर ऐरे यानी की सोलर प्लांट लगवाना चाहते हैं अपने घर में या दूकान में लगवाने के लिए  पर अगर आप सिंगल सोलर पैनल की प्लेट लेना चाहते हैं और अलग से कोई भी इन्वर्टर नहीं खरीदना चाहते हैं । तो आपको ac करंट बनाने वाला सोलर पैनल भी देखने को मिल जायेगा AC करंट बनाने वाला सोलर पैनल आपको खरीदना चाहिए या नहीं यह आपके ऊपर निर्भर करता है अगर आप सिंगल प्लेट खरीदना चाहते हैं तो खरीद सकते हैं । अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने नीचे लिंक दिया हुआ है आप पढ़ सकते हैं 

सोलर पैनल के उपयोग :

सोलर पैनल का उपयोग काफी जगह में किया जाताहै । लेकिन सबसे पहले शुरुआत की गयी थी इसकी कैलकुलेटर में । यानी की कैलकुलेटर के अंदर लगे सेल को चार्ज करने के लिए कैलकुलेटर के ऊपर छोटी सी सोलर पनेली प्लेट लगा दी जाती थी जिससे कैलकुलेटर की धुप में रखने से इसके ऊपर लगे सोलर पैनल में रौशनी पढ़ने से सेल चार्ज हो जाता था । तकनीक अधिक विकसित ना होने पर इसका उपयोग उस समय बड़े-बड़े उपकरणों को चलाने के लिए नहीं किया जाता था । लेकिन आज के समय में सोलर पैनल की टेक्नोलॉजी की काफी बेहतर साबित हो रही है जिससे इसका उपयग अब हर जगहों में किया जा सकता है खासकर घरों की छतों के ऊपर ताकि पुरे घरों के उपकरणों को चलाया जा सकते । जिससे बिजली मीटर का कनेक्शन नहीं लगवाना पड़ता है ।

हमारे देश में कुछ गाँव ऐसे भी हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते लेकिन वहां पर बिजली पहुंचाना बहुत ही मुश्किल था और हमारी देश की सरकार को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था । लेकिन सोलर पैनल आने पर इसे उस गाँव में लगाया जाने लगा जहाँ पर बिजली पहुंच नहीं पाती थी । सोलर पैनल एक बार लगाने के लिए खर्चा तो आता है लेकिन बिजली अधिक से अधिक 25 साल तक की फ्री मिलती रहती है क्योंकि सोलर पैनल अधिक से अधिक 25 साल तक काम करने में सक्षम होते हैं । घरों के अंदर लगे उपकरणों को चलाने के लिए कई सोलर पैनल लगाने पढ़ते हैं । सोलर पैनल की एक प्लेट अधितकम 150 वॉट और 100 वॉट तक की देखने को मिलती है । इसी के हिसाब से ही आप सही सोलर पैनल सेलेक्ट कर सकते हैं ।

सोलर पैनल के फायदे :

  1. सोलर पैनल सक्षम होते हैं फ्री में विधुत बनाने में ।
  2. पर्यावरण के लिए 100 प्रतिशत सुरक्षित यानी की प्रदूषण नहीं फैलाते सोलर पैनल ।
  3. सोलर पैनल की एफिशिएंसी अधिक होती है तकरीबन 25 साल
  4. वॉटरप्रूफ होते हैं सोलर पैनल यानी की बारिश और पानी का इन पर कोई असर नहीं

सोलर पैनल की कमियां :

  1. बिना गर्मी के यानी की बिना सूरज की रौशनी के विधुत नहीं बना पाते सोलर पैनल ।
  2. बल्ब की रौशनी से सोलर पैनल विधुत नहीं बना सकते ।
  3. सोलर पैनल की कीमत अधिक ही होती है ।
  4. रात के समय सोलर पैनल बिजली नहीं बना पाते क्योंकि रौशनी रात के समय इन पर नहीं पढ़ती ।
  5. गिरने के बाद टूटने का खतरा सोलर पैनल में अधिक होता है ।
  6. सोलर पैनल आकार में बड़े होने के कारण अधिक जगह घेरते हैं ।

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