हेलो दोस्तो आज हम आपको बताने वाले हैं pen kaise banta hai विस्तार के साथ ताकि आपको कहीं और जाना ना पड़े । हलांकि पेन तो खुद भी घर पर बन जाता है लेकिन इसके लिए छोटी सी मशीन खरीदनी पड़ जाती है लेकिन फैक्ट्री में पेन कैसे बनता है इसके बारे में ही हम आपको बताएंगे क्योंकि फैक्ट्री में आएं काफी तेज गति से और नए तरीके से बनता है ।
फैक्ट्री में पेन कैसे बनता है :
फैक्ट्री में पेन बनाने के तरीके कुछ-कुछ कंपनियों के थोड़े से अलग हो सकते हैं क्योंकि क्योंकि पेन महंगे से कम कीमत तक के देखने को मिल जाते हैं । फैक्ट्री में पेन बनाने के तरीके हेठ लिखे अनुसार है :
- बॉडी :
फैक्ट्री में सबसे पेन की बॉडी बनाई जाती है जैसे कि कैप, बॉडी और खाली रिफिल । ये सभी समान बनाने के लिए PCP (Polypropylene Copolymer) यानी कि प्लास्टिक और कुछ जरूरी पदार्थ को भी मिक्सिंग मशीन में डाला जाता है । पेन की बॉडी का रंग देने के लिए इसमें रंग साथ ही डाला जाता है । जहां पर ये मिक्सिंग मशीन डाले गए पदार्थ को अच्छी तरीके से मिलाती है । पदार्थ के अच्छी तरीके से मिल जाने के बाद मिले हुए मिशन को यही मशीन दुसरी मशीन में भेजती हैं । जहां पर ये दूसरी मशीन इसी मिश्रण को गर्म करके इसे पिघला कर इसको पेन का आकार देकर बाहर निकालती है । इसके सेंचे मशीन के अंदर ही पहले से बने होते हैं ।
- निब :
रिफिल के साथ निब जोड़ने के उसके बाद निब बनाई जाती है मेटल से । एल्युमिनियम से इन निब को पाइप जैसा आकार देती है कोई और मशीन । एल्युमिनियम की बनी इस छोटी सी पाइप को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है । पाइप के छोटे-छोटे टुकड़े हो जाने के बाद इसके सबसे आगे का हिसा दूसरी मशीन जो थोड़ा सा दाब देती है ताकि निब का आगे का हिस्सा के सुराख छोटा रह जाये ।
इसके बाद यही निब दूसरी मशीन के पास चली जाती है जहां ओर दूसरी मशीन इसकी निब में छोटी सी एल्युमिनियम के बोल डालती है और निब में थोड़ा सा दाब देकर इसे बाहर निकलने से रोकने के लिए दाब देती है । निब के बन जाने के बाद यह निब पॉलिशिंग मशीन में जाती है जहां पर पॉलिशिंग मशीन जो निब के बाहरी हिस्से को पोलिश कर देती है ताकि निब रगड़ खाकर नहीं बल्कि स्मूथ चले । जितना स्मूथ निब चलेगा होगा उतना ही पेन स्मूथ चलेगा, जिससे हाथों पर जोर कम लगेगा और स्पीड भी लिखने की तेज होगी ।
- स्याही बनाना :
पेन की बॉडी, रिफिल और निब के बन जाने के बाद फैक्ट्री में एक और मशीन होती है जो पेन के लिए स्याही बनाने का काम करती है । स्याही बनाने के लिए कुछ पदार्थों को आपस में मिलाया जाता है जैसे कि सॉल्वैंट्स, पिगमेंट, डाई, रेजिन, लुब्रिकेंट्स, सॉल्यूबिलाइज़र, सर्फेक्टेंट, पार्टिकुलेट मैटर, फ़्लोरेसेंट । इसके अलावा स्याही को थोड़ा सा खुशबूदार बनाने के लिए, रंग बदलने के लिए और भी कुछ पदार्थों को मिला दिया जाता है । इस मिश्रण को अच्छी तरीके से घोल लिया जाता है जिसके बाद गाढ़ा लिक्विड तैयार हो जाता है जिसे हम स्याही कहते हैं ।
- स्याही को रिफिल में भरना :
स्याही पाइप के जरिए दूसरी मशीन में जाति हैं जहां ओर दूसरी मशीन के नीचे छोटी सी कई पाइपें लगी होती हैं जो रिफिल में स्याही भरने का काम करती है । रिफिल में स्याही भर जाने किस बाद रिफिल आगे बढ़ने लगता है ।
- रिफिल में सिलिकॉन जेल डालना :
पेन की रिफिल के सबसे ऊपर सिलिकॉन जेल डाला जाता है ताकि स्याही बाहर ना निकले और पेन लीक ना हो । ऐसा पहले अक्सर हुआ करता था लेकिन अब ये प्रॉब्लम भी दूर हो चुकी है । हलांकि तकरीबन 3 रुपये के पेन में सिलिकॉन जेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता । सिलिकॉन जेल जो मशीन की टंकी में भरी होती है वह एक साथ कई रेफ़िलों में सिलिकॉन जेल पीछे स भर देती है ।
- बॉडी-पार्ट्स को जोड़ना :
सभी पार्ट्स के जुड़ जाने के बाद ये सभी पार्ट्स आगे किसी और मशीन के पास चले जाते हैं जहां पर ये मशीन पेन के बॉडी पार्ट्स को जोड़कर पेन का रूप दे देती है ।
- पेन की टेस्टिंग :
पेन के सभी बॉडी पार्ट्स जुड़ जाने कब बाद इस पेन की निब की टेस्टिंग बारीकी से चेक की जाती है । ताकि कोई भी निब थोड़ी सी भी गलत लाइन ना बनाये कागज में । किसी मशीन में एक साथ कई पेन को सेट करके पेज के ऊपर पेन को चलाया जाता है गोल-गोल जिससे अगर आकार सही बनता है तो इसका मतलब पेन की निब में और पेन की स्याही निकलने में कोई प्रॉब्लम नहीं है । ऐसा टेस्ट कई बार होता है ।
- ब्रांडिंग करना :
पेन के ऊपर कंपनी की ब्रांडिंग करना यानी कि कंपनी का नाम लिखना जो पहले से ही कर दिया जाता है जब आएं की बॉडी तैयार होती है । पेन की बॉडी के तैयार हो जाने के बाद ही इसके ऊपर कंपनी की ब्रांडिंग कर दी जाती है ।
- पैकिंग करना :
पेन के बन जाने के बाद पेन खुद दूसरी मशीन के पास जाता है जहां पर ये मशीन आएं को एकत्रित कर उसे डिब्बी में पैक करती जाती है । इस मशीन का काम होता है पेन को डब्बे में डालना ।
नोट :
फैक्ट्री में पेन बनते समय काफी कुछ पदार्थ बच जाता है जिसे दुबारा से रीसायकल कर लिया जाता है यानी कि दुबारा से इसको पेन बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है ।
पेन की इंक कैसे बनती है :
पेन की स्याही बनाने के लिए कुछ पदार्थों की जरूरत पड़ती है जैसे कि सॉल्वैंट्स, पिगमेंट, डाई, रेजिन, लुब्रिकेंट्स, सॉल्यूबिलाइज़र, सर्फेक्टेंट, पार्टिकुलेट मैटर, फ़्लोरेसेंट इत्यादि । जिसे मशीन के माध्यम से मिक्स करके लिक्विड बना लिया जाता है । स्याही को रंग देने के लिए अलग से रंग इसी लिक्विड में डाल दिया जाता है । बस यही स्याही कहलाती है और काफी ज्यादा गाढ़ी होती है ।
पेन की निब कैसे बनती है :
पेन निब एल्युमिनियम की बनी होती है । पेन की निब बनाने के लिए सबसे पहले एल्युमिनियम की बिल्कुल पतली सी पाइप के कई टुकड़े बनाये जाते हैं । इसी छोटे से पाइपों के टुकड़े के सबसे आगे के हिस्से को थोड़ा सा दबाया जाता है । इसके बाद इसके अंदर छोटी सी एल्युमिनियम की गेंद डाली जाती है ताकि निब स्मूथ चले और इसकी एलुमीनियम की निब रगड़ ना खाये । एल्युमिनियम की छोटी सी गेंद निब के आगे लगी होने से गेंद ही घूमती है जब पेन की चलाया जाता है कागज़ के ऊपर ।
पेन बनाने वाली कंपनियों के नाम :
पेन बनाने वाली कंपनियां तो काफी सारी हैं भारत में लेकिन हम नीचे पॉपुलर कंपनियों के नाम ही बताने वाले हैं और पॉपुलर के नाम हैं :
- सेल्लो
- कैमलिन
- फ्लेयर
- क्लासमेट
- मोंटेक्स
- नटराज
- Linc
- डोम्स
- Luxor
- रोरिटो
पेन बनने के बारे में मेरी राय :
आपने सिख लिया होगा कि फैक्ट्री में पेन कैसे बनते हैं लेकिन इसे खुद से बनाने के लिए आप छोटी सी मशीन भी खरीद सकते हैं जिसके बारे में वीडियो आपको यूट्यूब में मिल जाएगी आप देख लेना । पेंसिल कैसे बनती है, इरेज़र कैसे बनती है, फैक्ट्री में LED बल्ब कैसे बनते हैं और रबड़ कैसे बनता है इसके बारे में भी आपको जान लेना चाहिए जो आपके काम आएगा ।