प्लग के पिन में छेद क्यों होता है इसी के बारे में मैं आपको विस्तार से इस आर्टिकल में बताने वाला हूँ । हलांकि इस तरह के प्लग जिसकी पिन में छेद होते हैं ये प्लग भारत में बहुत कम जबकि दूसरे देशों में अत्यधिकः देखने को मिलते हैं जैसे कि USA में । लेकिन कुछ ही मात्रा में प्लग के पिन में छेद वाले प्लग आपको देखने को मिल जाते हैं तो चलिए जानते हैं इसके बारे में ।
प्लग के पिन में छेद क्यों होता है :
प्लग के पिन में छेद करने के कारण दो है । जोकि इस तरह हैं :
- कारण नंबर 1 :
प्लग के पिन में छेद इसीलिए किया जाता है ताकि जिस सॉकेट में प्लग को डाला जाए वहां पर अच्छी ग्रिप मिल सके यानी कि प्लग की सॉकेट के साथ अच्छी पकड़ हो जाती है । जिससे चिंगारी निकलने का खतरा नहीं होता । चिंगारियां तब निकलने लगती है जब सॉकेट का सुराख बड़ा और प्लग की पिन छोटी हो और सही तरीके से सॉकेट के साथ टच ना होती हो । हलांकि सॉकेट के अंदर लगी पिन में थोड़ा सा अंदर की तरफ उभार होता है ताकि जैसे कि प्लग की पिन अंदर घुसे तो पिन का छेद उभार वाली पिन के साथ अटक जाएगा जिससे प्लग हिलेगा नहीं और प्लग का सॉकेट के साथ अच्छी पकड़ भी बन ही जाती है । प्लग के पिन में छेद होने की वजह से ही प्लग सॉकेट के अंदर थोड़ा सा टाइट हो जाता है और प्लग का सॉकेट के अंदर टाइट होने के वजह से प्लग में चिंगारी नहीं बनती, जिससे प्लग सड़ते भी नहीं ।
- कारण नंबर दो :
बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रियों में कर्मचारियों की संख्या अधिक होती हैं इलेक्ट्रॉनिक फील्ड के अंदर । अगर कोई बन्दा मोटर को ठीक कर रहा होगा तो वह प्लग के छेद में छोटा सा ताला लगा देगा । जिससे सामने वाला बन्दा जो पहले बन्दे से काफी दूरी पर होगा अगर वो इस प्लग को लगाने जाएगा तभी वो समझ जाएगा कि कोई बन्दा किसी उपकरण को ठीक कर रहा है जिससे रिपेयर करने वाले यानी कि पहले बन्दे को करंट नहीं लगेगा । जिससे कुछ लोगों की जानें बच सकती हैं ।
प्लग के पिन में छेद करने से कंपनी को क्या फायदा होता है :
प्लग के पिन में छेद करने से मेटल का उपयोग थोड़ा सा कम हो जाता है । जिससे लाखों की तादाद में प्लग के पिन बनाने से खर्चा भी कम आता है और कम मेटल से ज्यादा पिन बन जाती हैं ।
पिन में छेद वाले प्लग कम क्यों दिखाई देते हैं :
हलांकि पिन में छेद वाले प्लग भारत में नहीं बनाए जाते क्योंकि इस तरह के प्लग हमारे सॉकेट में घुसते नहीं । ये प्लग दूसरे देशों में बनते हैं और दूसरे देशों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अगर मंगवाया जाए तो उसके प्लग के पिन में छेद होता हैजैसे कि चार्जर । इस तरह के प्लग के पिन के आकार में भी अंतर होता है जिसकी वजह से ये प्लग हमारे सॉकेट में नहीं घुस पाते । इसके लिए अलग से प्लग कनवर्टर खरीदना पड़ता तभी पिन में छेद वाले प्लग हमारे सॉकेट में लग पाएंगे । अधिकतर देशों में इसी तरह के प्लग बनाये जाते हैं और उनके सॉकेट भी हमारे सॉकेट की तुलना में बिल्कुल अलग होते हैं । हमारे सॉकेट में गोल छेद जबकि उनके सॉकेट में छेद चपटा और लम्बा होता है ।
प्लग के पिन में छेद होने के फायदे :
- प्लग के पिन में छेद होने से प्लग सॉकेट में घुसने के बाद टाइट हो जाता है जिससे प्लग हिलता नहीं
- पिन में छेद वाले प्लग सॉकेट में टाइट हो जाने की वजह से चिंगारी नहीं बनती । जिससे प्लग के सड़ने का खतरा नहीं होता
- लाखों की तादाद में प्लग के पिन में छेद रखने से मेटल का उपयोग कम होता है
- प्लग के पिन में छेद होने से कम मेटल में अधिक प्लग बनाये जा सकते हैं
प्लग के पिन में छेद होने के नुकसान :
- पिन में छेद वाले प्लग भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में लगते नहीं इसके लिए अलग से प्लग कनवर्टर खरीदना पड़ता है ताकि पिन में छेद वाले प्लग हमारे सॉकेट में लग सके